भारताय संगीत में इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यंत्रों का प्रचलन (परम्परा एवं धरोहर के विशेष सन्दर्भ में )

बृजेश कुमार

Abstract


‘‘प्रयोजनमनुदिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते।’’
बिना किसी विशिष्ट प्रयोजन के कोई भी व्यक्ति किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता तब शोध जैसे महत्वपूर्ण कार्य करने के पीछे कोई विशेष प्रयोजन होता है। संगीत विषय में शोध कार्य अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि संगीत एक मात्र मनोरंजन का साधन न होकर समस्त जनमानस के दुःखों एवं शोकां को दूर करने की प्राकृतिक औषधि है।
संगीत तक प्रदर्शनात्मक कला होते हुए भी एक विद्या की भांति अध्ययन-अध्यापन का विषय भी रहा है। यह एक ‘‘ललित कला’’ होते हुए भी विद्या इसलिए मानी जाती है कि यह निश्चित सिद्धान्तों पर आधारित है। यह सिद्धान्त ही शास्त्र का निर्माण करते हैं।


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