आधुनिक संदर्भों में ‘कबीर-बानी‘ की उपादेयता
Abstract
कबीर हिन्दी-साहित्य की श्रेष्ठतम् विभूति है। वे वाणी के उन वरद पुत्रों में हैं, जिनकी प्रतिभा के प्रकाश से हिन्दी साहित्यकाश चि-आलोकित रहेगा। कबीर की ‘बानी‘ में एक अलौकिक रसधारा प्रवाहमान है। भवभूति ने वाणी को आत्मा का काव्य कहा है। वह अविनाशी और अमर मानी गई है। कबीर की वाणी वास्तव में आत्मा की कला है। तभी तो उसमें गूढ़, आध्यात्मिकता अक्षय आनंद और अनंत कल्याण की भावना भरी है, जिसे प्राप्त करने के लिए महर्षि याश्रवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी व्याकुल हो उठी थी।
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