21वीं सदी के संदरà¥à¤­ में भकà¥à¤¤à¤¿ कावà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिकता

Ms. सुशीला

Abstract


21वी सदी के समय, समाज और संवेदना को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखें तो लगता है कि आज का समय वैशà¥à¤µà¤¿à¤• बाजारवाद और मीडिया के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ से इस तरह गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ है कि मानवीय संवेदना के लिठकहीं कोई अवकाश नहीं रह गया है। पिछले यà¥à¤—ों में जहां परिवार à¤à¤• इकाई था और संबंध-सूतà¥à¤° अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤—ाॠथे, वहीं 21वीं शताबà¥à¤¦à¥€ तक आते-आते वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ इकाई बन गया है, और संबंध सूतà¥à¤° इतने उलठगये हैं कि कब टूट जायं इसका कोई भरोसा नहीं। देखने में तो आज मीडिया ने वसà¥à¤§à¥ˆà¤µ कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬à¤•मॠको साकार कर दिया है किनà¥à¤¤à¥ परसà¥à¤ªà¤° संवेदनीयता के अभाव में उसका चरितारà¥à¤¥ होना पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ असंभव-सा है। आज भीड़ में रहकर भी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अकेला है और परसà¥à¤ªà¤° संबंधों में भी उसे अविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ की गंध मिलती है। यह à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ विडमà¥à¤¬à¤¨à¤¾ है जिससे बचने के लिठ21वीं सदी में कहीं कोई राह दिखायी नहीं पड़ती। आà¤à¤•ड़ों पर गौर करें मो पति-पतà¥à¤¨à¥€ संबंधों के टूटने व तलाक के मामले पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ देशों में तो पहले से ही चल रहे थे किनà¥à¤¤à¥ भारतीय समाज में इनका पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ जिस तेजी से बà¥à¤¾ है उससे पति-पतà¥à¤¨à¥€ संबंध के सामने भी à¤à¤• बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया है। आशय यह है कि इस उलà¤à¤¨-भरी शताबà¥à¤¦à¥€ में मानवीयता की राह पाने का अगर कोई मारà¥à¤— सामने दिखता है तो वह भकà¥à¤¤à¤¿ कावà¥à¤¯ में ही उपलबà¥à¤§ है। इस तरह 21वीं सदी में भकà¥à¤¤à¤¿ कावà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिकता विचारणीय है। मैनें अपने इस संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ निबंध में इसी पर अपना विचार रखने का विनमà¥à¤° पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया। वह कहां तक सारà¥à¤¥à¤• है इसका निराकरण सà¥à¤§à¥€ पाठक ही करेंगे।


Full Text:

PDF




Copyright (c) 2017 Edupedia Publications Pvt Ltd

Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.

 

All published Articles are Open Access at  https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/ 


Paper submission: ijr@pen2print.org