तुलसीदास जी के काव्य में प्रकृति सौन्दर्य
Abstract
मानव जीवन वैसे तो समस्त प्रकृति की गोद में ही गुजरता है सारी घटनाएं इसी के आंगन में घटित होती है। मानव प्रकृति की गोद में ही आंखें खोलता है व इसी की गोद में अंतिम सांस लेकर सो जाता है। तो हमारे काव्य निरूपण में कवि क्यों प्रकृति से अछूते रहते। और गोस्वामी तुलसीदास जी तो सदैव इसके साथ न्याय किया। काव्य में प्रकृति वर्णन से तात्पर्य उन वस्तुओं के वर्णन से है जो मानव निर्मित न होकर सहज नैसर्गिक स्थिति में होता है। जैसे वन, पर्वत, सरिता, पृथ्वी, सागर, आकाश आदि। कवि वनस्पति शास्त्री या भूगोलवेत्ता की भांति प्रकृति का अध्ययन या जानकारी प्राप्त करने हेतु नहीं करता न वह प्रकृति को ज्ञान या अर्थबोध की दृष्टि से देखता वरन् वह अपनी संवेदनाओं व अनुभवों तथा कल्पनाओं को आकार देने के उदश्य से ही प्रकृति को केन्द्रित करके काव्य रचना करता है।
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