पं. रमाबाई सरस्वती : महाराष्ट्र महिला सुधार आंदोलन में भूमिका
Abstract
भारतीय इतिहास में अग्रणी एवं महिला जनजागरण की पुरोधा युग की प्रतिमूर्ति रमाबाई (1858-1922) एक दैदिप्यमान नक्षत्र थी। जिन्होने महिला सुधार आंदोलन में नींव के पत्थर की भाँति कार्य किया। रमाबाई के क्रियाकलापों में नारी जागरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गयी थी, जिसके परिणामस्वरूप जागरूकता आयी। महाराष्ट्र के महिला सुधार आंदोलन में रमाबाई की महत्वपूर्ण भूमिका रही। रमाबाई ने आर्य महिला समाज की स्थापना कर महिलाओं को उनके अधिकार के प्रति सचेत करने का प्रथम प्रयास किया। विधवाओं को मनुष्यों के समान जीने का अधिकार देने के लिये ‘शारदा-सदन’ की स्थापना की। रमाबाई ने दो स्मरणीय कार्य किये जिन्हे भुलाया नहीं जा सकता। एक हंटर कमीशन के सामने गवाही एवं दूसरी स्त्री धर्म नीति पर पुस्तक। इस पुस्तक की खूब बिक्री हुई। मराठी में छिटपुट आलोचना के बाद भी किताब को लोगों ने सराहा। इसी बीच रमाबाई के मन में इंग्लैण्ड जाकर पढ़ाई करने एवं स्त्रियों की शिक्षा के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का विचार आया। इंग्लैण्ड में सैंट मेरिज होम से निमंत्रण मिलने के बाद रमाबाई कुछ दिनों तक सैंट मेरिज होम में रही। सैंट मेरिज होम में रहने के कुछ दिन बाद वहाँ की समीति ने रमाबाई को फुलहम भेजा।यह उन्हीं की एक शाखा थी और समाज से बहिष्कृत स्त्रियों के लिए ’उद्धार गृह’ था। 29 सितम्बर 1883 को रमाबाई ने ईसाई-धर्म स्वीकार किया।
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