सूत्रकालीन भारतीय समाज का ऐतिहासिक विश्लेषण

डॉ. राकेश कुमार

Abstract


वस्तुतः सूत्र ग्रन्थों की गणना वैदिक साहित्य में ही की जाती है और उपनिषद युग के अन्तिम चरण में ही सूत्र साहित्य की रचना प्रारम्भ हो चुकी थी, फिर भी इस साहित्य को उतना महत्व नहीं दिया गया जितना संहिता अथवा ब्राह्मण ग्रन्थों को दिया गया है। चूंकि सूत्र साहित्य भारत के विभिन्न भागों में रचा गया है। अतः इसका रचनाकाल भी अलग-अलग है और इसमें विभिन्न कालों व विभिन्न भागों का चित्र प्रस्तुत है। अधिकांश साहित्यकारों के अनुसार सूत्र साहित्य की रचना ईसा पूर्व सातवीं सदी से ईसा की दूसरी सदी तक हुई है। जिस समय सूत्रों की रचना हो रही थी तो उसी समय बौद्ध साहित्य भी रचा गया। बौद्ध साहित्य में जातक कथाओं का विशेष महत्व है। बौद्ध धर्म के साथ ही भारत में अन्य धर्मों का भी प्रचार-प्रसार हुआ परन्तु उनमें से अधिकांश सम्प्रदायों का साहित्य उपलब्ध नहीं है। इस सन्दर्भ में जो भी सामग्री उपलब्ध है, उसी से सूत्रकालीन भारतीय समाज का विश्लेषण किया जा सकता है। प्रस्तुत शोध पत्र में सूत्रकालीन भारतीय समाज के बारे में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।


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