प्राचीन भारत में भूमिदान का उद्भव और महत्त्व
Abstract
प्राचीन भारतीय समाज में पुण्यप्रद धार्मिक कृत्य के रूप में दान का विषिष्ट स्थान रहा है, जिसकी परम्परा ऋग्वैदिक काल से लेकर आज तक चलती आ रही है। यद्यपि दान को मूलतः धार्मिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखा जाता है किन्तु वास्तव में अनेक जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का निराकरण दान व्यवस्था के माध्यम से प्रतिपादित किया गया। दान की इसी उपादेयता के कारण शास्त्रकारों ने प्रत्येक युग में इसकी महत्ता की चर्चा भिन्न-भिन्न प्रसंगों में की है। पूर्व मध्यकालीन निबन्धकार हेमाद्रि ने दान की महत्ता पर प्रकाष डालते हुए लिखा है कि -
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