मध्यकालीन राजस्थान में रासो साहित्य का ऐतिहासिक विश्लेषण

सुरेन्द्र सिंह

Abstract


मध्यकालीन राजस्थान में अनेक प्रकार का साहित्य एवं रचनाओं का लेखन किया गया। राजस्थानी सामंती राज्यों ने अपने स्तर पर मुगल सत्ता के समान्तर अपने-अपने राजवंशों के इतिहास को बढ़ावा दिया। रासो साहित्य, ख्यात, रचनाएं, बात साहित्य तथा अन्य प्रकार के साहित्य से राजस्थान के इतिहास लेखन को बढ़ावा दिया गया। इन रचनाओं का लेखन राजस्थानी, मारवाड़ी तथा संस्कृत विधाओं में लिखा गया। ये रचनाएं राजस्थानी क्षेत्रीयवाद की अस्मिता को अधिक समेटे हुए हैं। ये रचनाएं अपने-अपने कुल के आधिपत्य- को वैधानिकता प्राप्त कराने का प्रयास अधिक हैं। क्योंकि इन रचनाओं में राज्य की सत्ता से गैर राजपूती जनजातियों के आत्मसात करने के प्रयास झलकते हैं। जब गैर राजपूत जनधारणा के देवी-देवताओं से जुड़ी किस्से-कहानियों को इनमें प्रमुखता के साथ वर्णित किया गया है। अनेक इतिहासकारों ने इन रचनाओं में राजपूतीकरण की प्रक्रिया (गैर-राजपूत के वर्गों, अनेक मूल्यों को राजपूती रंग में ढालने, स्वीकार करने के प्रयासों - राजपूत मूल्यों का हिस्सा बनाने) को ढूंढने में सफलता प्राप्त की है। वास्तव में रास रचनाएं राज सत्ता की विचारधारा की स्पष्टता को दिखाते हैं। राजपूतों के राजनैतिक गतिविधियों के साथ इनमें गैर-राजपूत समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक, मूल्यों, प्रचलित मान्यताओं आदि का भी व्यापकता से उल्लेख हुआ है। अब इतिहासकार इनके द्वारा गैर राजपूत दृष्टिकोण से तात्कालीन व्यवस्था को समझने व जानने के अधिक प्रयासरत हैं यह एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है जिससे राजपूत व गैर-राजपूतों के सम्बन्धों को नया आयाम प्राप्त हो सकता है।


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