‘शिगाफ़’ : आतंक और विस्थापन का दस्तावेज
Abstract
आतंकवाद किसी भी देश की गंभीरतम समस्याओं में से एक है। ऐसे ही कश्मीरी आतंकवाद भी भारत के लिए एक गंभीर समस्या है। कुछ स्वार्थी लोग धर्म की आड़ में अपने स्वार्थां की पूर्ति हेतु आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। कश्मीरी आवाम चौबीस घंटे आतंक के साये में जीते हैं। इसी कारण इस राज्य के चार लाख से भी अधिक लोग भयभीत होकर जीवन इच्छाआें को संजोए पलायन कर चुके हैं। इनमें से अधिकांश संख्या पंडितों की है जो अब शरणार्थियों के रूप में जम्मू या दिल्ली में रह रहे हैं। ‘शिगाफ’ उपन्यास इन्हीं कश्मीरी पण्डितां के विस्थापन की पीड़ा, आतंकवाद और घाव को नासूर बनाए रखने की सियासी चालाकियों आदि पर केन्द्रित है। कश्मीरी पण्डितों की संख्या 1947 में लगभग तीन लाख थी। लेकिन वर्तमान में पचास हजार पण्डित मुश्किल से घाटी में बचे होंगे। कश्मीर को मुस्लिम बहुल राज्य बनाने के लिए पाकिस्तान जैसे देश मुसलमानों को घाटी में आतंकवादी गतिविधियाँ बनाए रखने पर प्रश्रय देते हैं। लेकिन यह समस्या का हल नहीं है। मुस्लिम-अलगाव के कारण इस समस्या को कभी भी हल नहीं किया जा सकता। रामपुनियानी के अनुसार, ‘‘मुस्लिम अलगाववाद कश्मीरी समस्या में फिर नजर आ रहा है। पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद के प्रति मुसलमानों की निष्ठा निरन्तर बनी हुई है, यही कश्मीर समस्या का मूल कारण है।’’1
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