18वीं शताब्दी में भारत की आर्थिक स्थिति पर एक विशेषणात्मक अध्ययन

Ms. Saveen

Abstract


18वीं शताब्दी का भारतीय समाज आर्थिक दृष्टि से विषमताओं से भरा हुआ था। समाज में जहां तक और अमीर वर्ग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था तो दूसरी उन्हें निर्धन किसान, कास्तकार, मजदूर आदि जनसाधारण लोगों द्वारा पूरे वर्ष कठोर परिश्रम करने के बावजूद उन्हें अपना तथा अपने परिवार का पालन-पोषण करने में भी कठिनाइयाँ महसूस हो रही थी। समाज में सामन्तों का बोलबाला था, इसलिए उनके पास जीवन की सभी ऐश-आराम एवं विलास की वस्तुएँ उपलब्ध थी। कृषक अत्यंत गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे। बढ़ते हुए करों की माँग, अधिकारियों के अत्याचारों, जमींदारों एवं भूमि ठेकेदारों के आर्थिक शोषण ने जनसाधारण लागों के जीवन को और अधिक कष्टपूर्ण बना दिया था। नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों ने तो भारत की आर्थिक स्थिति ही बिगाड़ कर रख दी थी। इन आक्रमणों के परिणामस्वरूप अनेक बड़े-बड़े उन्नत एवं औद्योगिक नगर नष्ट हो गए। इसके अतिरिक्त जाटों, सिक्खों आदि के विद्रोह से भी भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुँचा।


Full Text:

PDF




Copyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd

Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.

 

All published Articles are Open Access at  https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/ 


Paper submission: ijr@pen2print.org