ईस्ट इण्डिया कम्पनी की राजनीतिक शक्ति की स्थापना के समय भारत की सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
18वीं शताब्दी में औरंगजेब की मृत्यू के पश्चात्, सम्पूर्ण भारत की राजनीतिक अस्थिरता तथा चारो ओर सता के लिए संघर्ष के कारण समाज में असुरक्षा एवं अशांति का वातावरण उत्पन्न हो गया। जाति प्रथा के कठोर बंधन, छूआछूत, स्त्री की दयनीय स्थिति, असंगत सामाजिक परंपराएं 18वीं शताब्दी में भारतीय समाज की विशेषताएं बन गई। लोगों को धार्मिक जीवन भी अत्यधिक रूढ़िग्रस्त हो गया। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि धर्मों की अपनी-अपनी प्रथाएं प्रचलित थी। समाज में अमीरी तथा गरीबी का बहुत भेद था। नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप लोगों का जीवन असुरक्षित हो गया। शिक्षा, कला तथा साहित्य का भी पतन हो रहा था। पी. एन. चौपड़ा, पुरी एवं दास ने अपनी पुस्तक ‘भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक इतिहास‘ में लिखा है कि ‘‘अज्ञानता और अंधविश्वास के मध्य ऐसी सामाजिक प्रथाएं भी धार्मिक दृष्टि से मान्य प्रतीत होने लगी जो वास्तव में हारिकारक और खतरनाक थी। पंडित वर्ग किसी भी सामाजिक बुराई को शास्त्रोचित बताकर इसे धार्मिक कार्य का रूप दे रहे थे। कन्या वध, बाल-विवाह, बहुविवाह, विधवाओं को जीवित जला देना और ऐसी ही अन्य सामाजिक बुराईयों को शास्त्रोचित और धार्मिक क्रियाएँ करार दे दिया गया और इसलिए अत्यन्त जघन्य कार्य करने से पहले भी किसी के अन्तःकरण को कोई क्लेश नहीं होता था। इसी प्रकार जात-पात,
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