अकबर के शासनकाल में हिन्दू-मुस्लिम समन्वयवाद की प्रक्रियारू एक आलोचनात्मक अध्ययन
Abstract
मध्यकालीन भारत मे हिंदू-मुस्लिम दो भिन्न संस्कृतियां के समन्वय की प्रक्रिया सम्पूर्ण मध्यकाल के दौरान एक निरंतर धारा के रूप में बहती रही है। इस प्रक्रिया ने संस्कृति के विभिन्न तत्वां-कला, साहित्य, आचार-विचार, व्यवहार सभी स्तरां पर संस्कृति व समाज को समृद्ध किया। उदारवादी तथा रूढ़िवादी दृष्टिकोणां से प्रभावित होने वाली यह प्रक्रिया सदैव एक समान गति से आगे नहीं बढ़ी। शासकां के वैयक्तिक दृष्टिकोण, धार्मिक वर्ग के प्रभाववश तथा विभिन्न परिस्थितियां के कारण यह प्रक्रिया कभी उन्नत और कभी बाधित होती रही। 16 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की स्थापना से भारतीय वातावरण में नवीन तत्वां के समावेश से हिंदू-मुस्लिम समन्वयवाद की प्रक्रिया को नवीन दिशा मिली। बाबर तथा हुमायूं ने लड़ाईयां में उलझे रहने तथा अल्पशासन काल के कारण एक ऐसा अव्यवस्थित राज्य अकबर के लिए छोड़ा जिस पर अफगानां तथा स्थानीय हिंदू शासकां का खतरा मंडरा रहा था। ऐसे विषाक्त वातावरण में जहां हिंदू स्वयं को राज्य से जोड़कर नहीं देख रहे थे, अकबर के लिए शासन करना एक चुनौती पूर्ण कार्य था जिसे अकबर ने सहर्ष स्वीकार किया तथा अपने विवेक एवं बुद्धिमतापूर्ण नीतियां से इसमें सफलता प्राप्त की। प्रस्तुत शोध पत्र में अकबर के शासनकाल में हिन्दू.मुस्लिम समन्वयवाद की प्रक्रिया का एक आलोचनात्मक अध्ययन किया गया है।
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