महात्मा गांधी के राजनीतिक विचारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
महात्मा गांधी पैगम्बर होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे। उनके लिए यह परिस्थिति बडी कष्टदायक थी कि राजनीति में मैक्यावलीय प्रवृत्ति की भी प्रधानता होनी चाहिए। जिसका मतलब होता है कि राजनीति धर्म रहित हो और छल छद्मयुक्त राजनीति में साम्राज्य की प्रमुखता हो । उन्होंनें इस प्रकार की कुटिल राजनीति को जो नैतिकता विहीन हो, किसी भी दशा में उचित नहीं माना। गांधी जी का विचार था कि राजनीति को नैतिकता व मानव कल्याण का साधन होना चाहिए। श्री विश्वनाथ के अनुसार गांधी जी का आग्रह था कि राजनीति का आधार धर्म होना चाहिए। उन्होंने उपयोगिता के इस प्रसिद्ध सिद्धांत को कभी स्वीकार नहीं किया कि धर्म व्यक्ति का निजी मामला हो और इसलिए उसका राजनीति से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। हालांकि गांधी जी ने राजनीतिक दर्शन पर कोई ग्रंथ नहीं लिखा, बल्कि समय-समय पर उनके जो विचार व्यक्त हुए और देश के स्वाधीनता संग्राम के समय के दौरान उनकी जो कार्य नीति रही और उन्होंनें अपने चिंतन और व्यवहार की जो व्याख्याएं दी, उन सभी से ही हमें महात्मा गांधी जी के राजनीतिक दर्शन का ज्ञान होता है।
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