प्रेम और समर्पण के लोककविः कबीर

शर्मिला राठी

Abstract


हिन्दी साहित्य इतिहास के काल विभाजन में भक्ति काल को साहित्य के स्वर्ण-युग के रूप में विश्लेषित किया जाता है। हिन्दी साहित्य का सौभाग्य है कि इसी भक्ति काल में रामाश्रयी भक्त कवियों में सर्वश्रेष्ठ तुलसीदास मिले जिन्होंने दशरथ पुत्र राम के आदर्शमयी जीवन का लोककल्याणकारी रूप ’रामचरित मानस’ के रूप में अभिव्यक्त किया। यह सर्वविदित है कि ’रामचरित मानस’ भारतीय जन मानस का शिरोमणी ग्रंथ है जिसे साहित्यिक एवं धार्मिक दोनों रूपों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ’तुलसीदास’ के अतिरिक्त कृष्ण भक्त कवियों में नेत्रहीन सूरदास का जिक्र ’वात्सल्य रस’ के सम्राट के रूप में बडे ही आदर के साथ लिया जाता है। इनके साथ इस युग में सूफी काव्य मत के अंतर्गत ’पद्मावती’ के रचयिता मलिक महोम्मद जायसी ने मानवीय रूपकों के माध्यम से अनन्त अगोचर परमात्मा की प्राप्ति हेतू संघर्षशील व्यक्ति और कवि का स्थान प्राप्त किया। जिन्होंने भाषा के गूढतम रूप में कविता न करके अवधि के ठेठ रूप का प्रयोग किया। उपरोक्त सभी महानुभवों मे भी श्रेष्ठतम संत कबीर निरगुणोपासना के पहले ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त असंगतियों, रूढ्ता - जड्ता एवं अशोभनीय की ना केवल आलोचना की अपितु इसके साथ ही साथ स्वंय अपने जीवन में उसे कार्यरूप में मूर्त कर लोगों के सामने आदर्श भी स्थापित किया। इसलिए हिन्दी के पहले लोककवि होने का श्रेय उन्हें ही जाता है।

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