वेदों में वर्णित योगविद्या
Abstract
योगदर्शन एक बहुत ही महत्वपूर्ण और साधकों के लिए परम-उपयोगी शास्त्रा है। इसमें अन्य दर्शनों की भाट्टति खण्डन-मण्डन के लिए युक्तिवाद का अवलम्बन न करके, सरलतापूर्वक बहुत ही कम शब्दों में अपने सि(ान्तों का निरूपण किया गया है। योगांग 8 बताए गए हैं - यम-नियम- आसन-प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणा- ध्यान-समाधि। संक्षेप में, यह मानव से महामानव बनाने वाला दर्शन है। ‘तन स्वस्थ-मन स्वच्छ, पिफर होते सारे कर्म स्वच्छ।’ इस प्रकार इस ग्रन्थ में बहुत ही थोड़े शब्दों में आत्मकल्याण के लिए बहुत ही उपयोगी और प्रत्यक्ष उपाय बताए गए हैं। पात×जल योगदर्शन और वैदिक-साहित्य हमेशा से ही सम्पूर्ण विश्व के लिए अनुकरणीय रहे हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने समस्त विद्याओं को सूक्ष्मरूपेण वेदों में ही निहित बताया। इसी क्रम में स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक ने योगदर्शन के मूल सि(ान्तों को भी वेदों में विद्यमान बताते हुए योगामृत-योगमार्ग-पत×जलि योग दर्शन नामक कई पुस्तकें लिखी।
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