सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म के विकास में योगदानः एक विश्लेषण
Abstract
शोद्य-आलेख सार : वस्तुतः बौद्ध धर्म का संबध महात्मा बुद्ध से है जिनका जन्म ईसा से 563 वर्ष पूर्व लुम्बिनी वन में हुआ था। बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ थ। वे एकान्तप्रिय तथा चिन्तनशील बालक के रूप में प्रसिद्ध थे। बचपन से ही विवाह बंधन में बंधने के बावजूद उन्होंने गृह त्याग किया और संसार की मोहमाया से दूर तपस्या में लीन हो गए। उनके गृह त्याग की क्रिया इतिहास में ‘महाभिष्क्रमण’ के नाम से प्रसिद्ध है। सत्य और ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या की और कालांतर में इसी स्थान पर 35 वर्ष की आयु में उन्हें बुद्धत्व (ज्ञान) प्राप्त हुआ। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, वह बोधि वृक्ष कहलाया। ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने सर्वप्रथम सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश दिया। यह घटना भारतीय इतिहास में धर्म-चक्र-प्रवर्तन के नाम से जानी जाती है। अपने जीवन के शेष समय को भी महात्मा बुद्ध ने धर्म के प्रचार में व्यतीत किया। उनके प्रयासों से ही बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया। इस परम्परा को सम्राट अशोक ने आगे बढाया।
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