बिहार में दलित आंदोलन का इतिहास

अभय कुमार

Abstract


भारतीय संविधान द्वारा मानवीकृत अनुसूचित जाति को संबोधित करने के लिए आज दलित शब्द का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। औपनिवेशिक काल में भारत के अछूतों, शोषितों तथा पीड़ित जातियों के संबोधन हेतु ैबीमकनसमक ब्ेंजम शब्दावली का इजाद साइमन कमीशन द्वारा किया गया था जिसे पहले इंडिया एक्ट 1935 तथा बाद में भारतीय  संविधान ने अंगीकृत कर लिया। ैबीमकनसमक ब्ेंजम शब्दावली का हिन्दी रूपांतरण अनुसूचित जाति है। वैदिक काल से लेकर सम्पूर्ण परतंत्र भारत में इन जातियों पर अनेक प्रकार के सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक प्रतिबंध हुए थे। तलब भूषण, पी॰एस॰ अय्यर, बी॰एम॰ महाजन, के॰सी॰ अय्यर, बालकृष्ण, ज्योतिबा फूले, बी॰आर॰ भिन्डे तथा भण्डारकर जैसे समाज सुधारकों ने उनकी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने तथा उनके ऊपर लगी अयोग्य वाली को दूर करने के लिए काफी प्रयास किया। किन्तु बीसवीं सदी के प्रारम्भ में भारत में दलितों की स्थिति काफी दयनीय बनी रही। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अमूल्य योगदान रहते हुए भी वे हिन्दूओं के लिए अस्पृश्य ही बने रहे।





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