श्रम संबंधः गांधी जी का दृष्टिकोणरू एक नूतन विमर्श
Abstract
एक समय था, जब गांधी जी ने श्रम संबंधों, जिसे आजकल औद्योगिक सम्बन्धों के नाम से जाना जाता है अपने सत्य-अहिंसा के सिद्धान्तों का प्रयोग कर एक नया प्रतिमान स्थापित किया था, किन्तु आज श्रम-संबन्धों की जो छीछालेदर हो रही है, उसका प्रभाव उत्पादकता और अर्थव्यवस्था पर तेजी से पड़ रहा है। श्रमशक्ति राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। राष्ट्रीय हितों का तकाजा है कि श्रमशक्ति राजनीति से अलग रहे। परन्तु हमारे देश में स्थिति पूरी तरह राजनीति से बंध गयी है। हालत यह है कि श्रमशक्ति राजनैतिक दलों से बंधकर ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है। जहां से उसका निकलना संभव नहीं हो पा रहा है। पिछले 38 वर्षां में श्रमशक्ति के विकास पर दृष्टि डाली जाये तो पता लगता है कि श्रम-संघ यद्यपि जुझारू बने हैं परन्तु श्रमशक्ति का विकास कुठित हो गया है।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org