स्वच्छता संबंधी सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भरू एक विमर्श

डॉ. केशरी नन्दन मिश्रा

Abstract


स्वच्छता तक पहुंच बुनियादी ढांचे से जुड़ी समस्या नहीं है बल्कि इसमें अधिक गहरा व्यवहार संबंधी एवं सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ काम करता है। 60 करोड़ लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाना ऐसी चुनौती है, जिसका बीड़ा संभवतः दुनिया में कभी किसी ने नहीं उठाया है। इसे सघन, समयबद्ध हस्तक्षेप से ही हासिल किया जा सकता है, जिसे सर्वाच्च-स्तर से चलाया जाए और जिसमें समाज के सभी वर्ग और सरकार शामिल हों।
कहते हैं, जिसका समय आ गया है उसे कोई रोक नहीं सकता! रक्तरंजित विश्वयुद्ध के बाद जब हिंसा का बोलबाला था, उस समय भारत ने अहिंसक सविनय अवज्ञा के जरिए, सत्याग्रह के जरिए आज़ादी हासिल की। पूरा देश महात्मा गांधी की आवाज़ के पीछे चल पड़ा और भारत ने दुनिया के सामने उदाहरण स्थापित करते हुए आज़ादी हासिल की। वह एक विचार था, जिसका समय आ चुका था। इसी तरह जब देश सबसे ज्यादा खुले में शौच करने वाले देशों की कुख्यात सूची में बहुत ऊपर है, उस समय 02 अक्टूबर, 2019 तक सभी जगह सफाई के साथ स्वच्छ भारत की प्रधानमंत्री की अपील एक ऐसा विचार है, जिसका समय आ चुका है।


Full Text:

PDF




Copyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd

Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.

 

All published Articles are Open Access at  https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/ 


Paper submission: ijr@pen2print.org