मोहन राकेश के नाटकों में नारीवादी दृष्टिकोण
Abstract
वस्तुतः मोहन राकेश के नाटकों में समाज का व्यापक परिदृश्य अभिव्यक्त हुआ है। उन्होंने अपने नाटकों में नारी के विभिन्न रूपों का चित्रण प्रस्तुत किया है। चूंकि नारी के बिना समाज की कल्पना संभव नहीं है और आज भी हमारा समाज स्त्री को अबला और दीन समझता है, परन्तु मोहन राकेश ने अपने नाटकों में अलग-अलग ढंग से नारी के विभिन्न रूपों का प्रस्तुतिकरण किया है। उन्हांने -आषाढ का एक दिन’ नाटक में भारतीय नारी की समपर्ण भावना की अभिव्यक्ति की है, वहीं दूसरी तरफ ‘आधे-अधूरे’ नाटक में एक आधुनिक स्वतंत्र नारी को अभिव्यक्त किया है जो पुरूष के निक्कमेपन का विरोध करती है। इसी तरह के नारी भावों का उतार-चढाव अलग-अलग नाटकों में अलग-अलग ढंग से देखने को मिलता है। प्रस्तुत शोध पत्र में मोहन राकेश के विभिन्न नाटकों के आधार पर उनके नारी चरित्रों को उजागर करते हुए नारीवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया है।
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