हिन्दी साहित्य में नाटक विद्या का उद्भव एवं विकास
Abstract
वस्तुतः नाटक एक ऐसी विद्या है जो जीवन के हर क्षेत्र में दृष्टिगोचर होती है। वर्तमान सन्दर्भ में यदि नाटक की प्रासंगिकता पर दृष्टिपात किया जाये तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आज सामाजिक समस्याओं को जनता के बीच ले जाने तथा जनजागरूकता लाने में नुक्कड़ नाटकों का खुलकर प्रयोग हो रहा है। चूंकि नाटक समाज के लिए नये भाव व अर्थ का बोध करवाते हैं, इसलिए इनका महत्व सर्वविदित है। अधिंकांश साहित्यकार इस बात से सहमत हैं कि हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु युग को नाटक विद्या का स्वर्णयुग माना जाता है। प्रस्तुत शोध पत्र में हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु युग से लेकर स्वाधीनता तक नाटक विद्या के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डाला गया है।
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