प्राचीन भारत में पितृसत्तात्मकता का समाजशास्त्रीय विकास
Abstract
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि सृष्टि की रचना स्त्री व पुरुष दोनों से मिलकर हुई है. इस रचना विधान में दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. किसी एक से यह संसार नहीं बसा पर फिर भी समाज पुरुष प्रधान है. सांसारिक शक्तियों पर पुरुषों का ही अधिकार है. इस व्यवस्था को ही पितृसत्तात्मकता की संज्ञा दी गयी है. मेरे इस अनुसंधान में मैं पितृ सत्तात्मकता की संरचना, विकास, स्त्री स्थिति के सन्दर्भ में इतिहास में व्याप्त तथ्यों का विश्लेषण करने का प्रयास करूंगी.
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