ऋग्वैदिक और उत्तरवैदिक कालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति का एक तुलनात्मक अध्ययन
Abstract
ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति में अंतर बड़ा है, जहाँ ऋग्वैदिक काल में उन्हें समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त था वहीँ उत्तरवैदिक काल में उनकी स्थिति में गिरावट दर्ज की गयी है। ऋग्वैदिक काल का जीवन अपेक्षाकृत स्वतंत्र और स्वछंद था। सामाजिक गतिविधियों में उनके किसी भी सहभागिता पर प्रतिबंध नहीं था। वैदिक काल में स्त्री जितनी स्वतंत्र थी , परवर्ती काल में शायद वे किसी भी युग में नहीं थी। उत्तरवैदिक काल की स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आया और उनकी दशा में अवनति के तत्व दिखाई देने लगे। उनके सामाजिक और धार्मिक अधिकार तो बने रहे लेकिन उनके वैयक्तिक गुणों के प्रति संदेह व्यक्त किया जाने लगा। पुरुष प्रधान समाज के कारण स्त्रियों की स्थिति दयनीय हो गयी। इस शोधपत्र के मेरा प्रयास है स्त्रियों की स्थिति में क्रमिक ह्रास के कारणों और उनके चरणों की पड़ताल करना।
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