लघु ऋण का ग्रामीण क्षेत्र के विकास में महत्त्व
Abstract
लघु ऋण की ग्रामीण क्षेत्र के विकास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सबसे बड़ी उपलब्धि तो इसकी यह मिली की सेठ-साहूकारी प्रथा का अन्त अपने अन्तिम छोर पर है। विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह स्पष्ट हो गया है कि पहले महाजन व बड़े-बड़े सेठ -साहूकारों से ऋण लेने की दर 62 प्रतिशत थी। लेकिन लघु ऋण व्यवस्था की वजह से यह प्रतिशत अब बहुत ही कम होता जा रहा है अब यह 10 प्रतिशत ही है। युनाइटेड नेशन वर्ल्ड कमेटी 2005 की रिर्पोट के अनुसार, ‘वित्तिय सेवाऐं गरीबों के लिए बहुत आवश्यक है। विश्व स्तर पर भी इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि लघु ऋण व्यवस्था पिछले कई दशकों से गरीबी को उखाड़ फेंकने हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण हथियार है, लघु ऋण व्यवस्था का गरीबों के जीवन में बहुत महत्त्व है। अतः इसके द्वारा 2015 तक 50 फीसदी गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा था। लघु ऋण व्यवस्था ही लघु वित्त व्यवस्था कहलाती है। लघु वित्तिय कार्यक्रम अधिकतर स्थानीय आधार पर संचालित किए जाते हैं लघु ऋण सुविधा देकर अभावग्रस्त लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने की पूरी कोशिश की जाती है। लघु वित्तिय सेवाओं का आकार छोटो होता है अर्थात् ऋण की राशी बहुत छोटी होती है तथा लघु ऋण सेवाऐं प्राप्त करने वाले तो गरीब व बेहद गरीब होते है।
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