पूँजीवाद की भेंट चढ़ते प्राथमिक शिक्षा को बचाने हेतु ज़रूरी है एकसमान शिक्षा प्रणाली

अशोक कुमार सखवार

Abstract


शिक्षा व्यक्ति के जीवन में नितांत आवश्यक होती है। शिक्षा से किसी व्यक्ति में सोचने-समझने एवं अपनी संवेदनाओं, विचारों, भावनाओं आदि को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने की क्षमता का विकास होता है। साथ ही, शिक्षा व्यक्ति के आंतरिक व्यक्तित्व को उभारने का काम करती है। आज इस निजीकरण और बाजारीकरण के दौर में लोग साक्षर तो बने हैं, लेकिन समझदार नहीं। संविधान में अंकित अनुच्छेद 21क कहता है, “राज्य 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा, जिसे की राज्य उचित रीति से विधि द्वारा अवधारित करे।”[i]भारत में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होने के कारण विद्यालयों में बच्चों की नामांकन-संख्या, उपस्थिति-दर और साक्षरता बढ़ी है। वहीं भारत में शैक्षणिक गुणवत्ता काफी चिंताजनक है। सरकार लोगों को आकड़ों में साक्षर दिखाने एवं संविधान में अंकित सभी को नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा की मजबूरी और वैश्विक स्तर पर साक्षरता के आकड़ों में अच्छा दिखाने का कार्य करती है। संविधान ने तो सभी को प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का अधिकार देना सुनिश्चित किया है। ऐसा हो भी रहा है, लेकिन शिक्षा का स्तर बहुत ही बदहाली में है। सरकारी विद्यालयों का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है।

[i] भारतीय संविधान, प्रकाशक सेन्ट्रल ला पब्लिकेशन, इलाहाबाद, 2010


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