कुछ असल है कुछ ख़्वाब है, कुछ तर्जे़अदा है
Abstract
नासिरा शर्मा के उपन्यास पारिजात में रिश्ते-नाते, इंसानियत, उलझनें, मातम और जीवन सब कुछ पूरी रवानगी से मौजूद है। इसके अंतर्गत महज मनुष्यता को ही केन्द्र में न रखकर मनुष्य के व्यक्तित्व एवं अस्तित्व को केन्द्र में रखने का प्रयास किया गया है। पारिजात शब्द यहाँ सुकून के द्योतक के रूप में दिखाई पड़ता है। जिसकी उपन्यास के लगभग हर पात्र को तलाश है। इस उपन्यास की खासियत यह भी है कि इसमें जीवन और अनुभव जगत के रेशों को इतनी खूबसूरती से खोला गया है कि दो पीढ़ियों का अंतराल अपने फासलों को कम करने में सक्षम दिखाई पड़ता है। हर जगह प्रेम का त्रिकोणात्मक संबंध कहीं पाठक के समक्ष सवाल खड़े करता है तथा धर्म एवं जाति का पूरा इनसाइक्लोपीडिया पाठक के कई सवालों का जवाब बन कर जेहन की खिड़कियों को भी खोल देता है।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org