गंगा प्रसाद विमल के काव्य में आम आदमी की पीड़ा

कान्ता देवी

Abstract


आधुनिक युग भावनाओं व विचारों की सार्वजनिक विकृति का युग है। लेखक जितना जागरूक होता है, उसके सम्मुख उतनी ही समस्याएँ मुंह फाड़े खड़ी होती है। गंगा प्रसाद विमल इन समस्याओं से भली-भांति अवगत है। साहित्य में कुछ बुनियादी सरोकार होते हैं। उन सरोकारों को वे परत-दर-परत उघाड़ते नजर आते हैं। वे हमेशा से प्रयास करते हैं कि उनके द्वारा रचा गया इतिहास सार्थक हो। इसी कारण पाठक उनके साथ आत्मीय संबंध बना लेता है। डॉ. गंगा प्रसाद विमल हिन्दी साहित्य में अकविता आन्दोलन के जनक माने जाते हैं। इन्होंने हिन्दी साहित्य में अनुवादक, उपन्यासकार व कथाकार के रूप में कार्य किया है। ये कई सरकारी सेवाओं में कार्यरत रह चुके हैं तथा कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पुरुस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। विमल का काव्य आम आदमी की आवाज है? जिसमें उन्होंने समाज के प्रताड़ित, दलित, बुझे व टूटे, अपनी अस्मिता की तलाश में फिरते आम आदमी के प्रति उनकी सहानुभूति व संवेदना प्रकट की है।

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