हिन्दी काव्य में किसान
Abstract
शोध आलेख सार-प्राचीन काल से ही कृषि को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाने वाले भारत देश के कृषकों का जीवन कष्ट, अभाव और परेशानियों से ग्रस्त रहा है जबकि समाज का का उत्पादक वर्ग किसान है, उसी की उन्नति से देश की उन्नति सम्भव है और उसकी बदहाली देश की बदहाली है। उसके जीवन का प्रत्येक क्षण संघर्षयुक्त रहा है। अशिक्षित होने के कारण उसकी कठिनाईयां और भी बढ़ती जा रही हैं। शायद ही उसे कभी जमींदारी और महाजनी शोषण से मुक्ति मिली हो अन्यथा भीषण दुपहरी और कड़ाके की ठंड़ में भी खेतों में काम करते हुए भूख और प्यास से जुझता रहा है। 20वीं सदी के प्रारम्भ तक आते-आते तो सम्पूर्ण भारतीय किसान अंग्रेजो के शोषण का शिकार हो गया था। कृषक कई तरह की यातनाएँ झेलता था। प्राकृतिक आपदाओं (सूखा, अकाल, अतिवृष्टि) से
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