कालिदासकालीन लोक विष्वास व धारणाएँ : विषेष संदर्भ - अभिज्ञानषाकुन्तलम्
Abstract
किसी भी कवि या रचनाकार का कार्य तत्कालीन समाज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यदि किसी भी कवि की रचना, काव्य या लेख समाज में लोकप्रिय है तो यह स्पष्ट है कि वह रचना अपने काल और युग में प्रचलित लोक-विष्वास व धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं का वाहक है। महाकवि कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक में हमें तत्कालीन समाज के विष्वासों, धारणाओं और मान्यताओं के दर्षन होते हैं। प्रस्तुत शोध लेख के माध्यम से महाकवि कालिदासकृत अभिज्ञानशाकुन्तलम् में प्राप्त विवरण द्वारा तत्कालीन लोक-विष्वास व सामाजिक धारणाओं को प्रकाष में लाने का प्रयास किया गया है।
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