अरविन्द के सर्वांग शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त
Abstract
संक्षेप : समकालीन भारत में शिक्षा-दर्शन के क्षेत्र में जितने अधिक तर्कयुक्त और सर्वांग विचार श्री अरविन्द ने उपस्थित किए हैं वैसे किसी भी अन्य शिक्षा-दार्शनिक के लेखों में नहीं मिलते। प्रत्येक शिक्षा-दार्शनिक का शिक्षा-दर्शन उसके सामान्य दर्शन पर आधारित होता है। अस्तु, जिस दार्शनिक का सामान्य दर्शन जितना ही अध्कि सर्वांग होगा, उसका शिक्षा-दर्शन भी उतना ही अधिक सर्वांग बन पड़ेगा। यही कारण है कि श्री अरविन्द का शिक्षा-दर्शन अन्य शिक्षा-दार्शनिकां के विचारों की तुलना में अधिक सर्वांग प्रतीत होता है। शिक्षण-कला शिक्षा-दर्शन के लक्ष्यों को कार्यरूप में परिणत करने का माध्यम है। श्री अरविन्द के दर्शन में राजनीति दर्शन, नीति दर्शन, धर्मदर्शन और योगदर्शन इत्यादि कोई भी पहलू उनके सामान्य दर्शन से अलग नहीं है। यही बात शिक्षा-दर्शन के बारे में भी सत्य है। उन्होंने समस्त ब्रह्माण्ड में जिस सच्चिदानन्द के विकासमान रूप के दर्शन किये, उसी की पूर्ण अभिव्यक्ति को शिक्षा का लक्ष्य माना। उनका दर्शन सब कहीं विकासवादी है, इसलिए उनके शिक्षा-दर्शन में भी विकासवादी प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है।
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