श्रीभक्तिरसामृतसिंधु में भक्ति
Abstract
श्री रूपग¨स्वामी क¢ अनुसार अन्य कामनाअ¨ं से रहित, ज्ञान-कर्मादि से अनावृत तथा अनुकूल-भाव से श्रीकृष्ण का ज¨ अनुशीलन है, वह उत्तमा भक्ति है। पुरुष¨त्तम भगवान श्रीकृष्ण में अहैतुकी एवं अव्यवहिता भक्ति क¨ निर्गुण भक्ति य¨ग कहा गया है, ज¨ सवर्¨त्कृष्ट है। इस प्रकार की भक्ति क¢ साधक सर्वत¨भाव से सेवा ही चाहते हैं। श्री भगवान क¢ द्वारा पाँच प्रकार की मुक्तियाँ देने पर भी वे उन्हें ग्रहण नहीं करते हैं। श्रीभक्तिरसामृतसिंधु में श्री रूप ग¨स्वामी ने भक्ति क¢ तीन प्रकार बताए हंै- साधन भक्ति, भाव भक्ति और प्रेम भक्ति।
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