साधारणीकरण

अंशु शर्मा

Abstract


साधारणीकरण का सिद्धंात भारतीय काव्यशास्त्र की महत्त्वपूर्ण देन है। भारतीय काव्यशास्त्र में रस को काव्य की आत्मा घोषित किया गया है और साधारणीकरण का सिद्धंात रसानुभूति की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग है। साधारणीकरण रस अनुभूति की पूर्वावस्था है। साधारणीकरण की प्रक्रिया के द्वारा विशेष भावनाएँ व्यापक रूप में आनंदित होती हैं। साधारणीकरण को समझने के लिए स्थायी भाव को समझना आवश्यक है क्योंकि स्थायी भाव पर ही रस का अनुभव आधारित होता है। स्थायी भाव नौ प्रकार के होते हैं और यह सभी मनुष्यों में स्थायी रूप से निवास करते हैं। रस के बारे में सबसे पहले भरत मुनि ने कहा। भरत के रस-सूत्र की व्याख्या मुख्यतः श्री शंकुक, भट्ट लोल्लट, भट्ट नायक और अभिनवगुप्त ने की।

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