भारत में मानवाधिकारों व सामाजिक न्याय की स्थिति : दलितों के सन्दर्भ में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
मानवाधिकार व सामाजिक न्याय एक सभ्य समाज की आधारशिला है। यह सामाजिक व राजनीतिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकताआें में से एक है। व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास तब तक नहीं कर पाता जब तक कि उसे मानवाधिकारों की पूर्ण व समान उपलब्धता न हो। राजनीतिक व्यवस्था चाहे किसी प्रकार की हो, राज्य का सर्वोत्तम लक्ष्य अपने-अपने नागरिकों के मानवाधिकारों का संरक्षण करना है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में तो यह अत्यन्त अनिवार्य है। इसी के मद्देनजर भारत में भी प्राचीन काल से ही जब राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी, मानवाधिकार किसी न किसी रूप में अवश्य उपस्थित थे पर यह सभी वर्गों को समान रूप से उपलब्ध नहीं थे।
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