प्राचीन भारतीय समाज-संघठन -एक विवेचना
Abstract
भारतीय जीवन के व्यक्ति की आन्तरिक उन्नति को बहुत महत्त्व दिया गया था। इस आन्तरिक उन्नति को बहुत महत्त्व देते हुए भी यह माना गया था कि इस आन्तरिक उन्नति के लिए एक उपयुक्त वाह्म वातावरण की आवश्यकता है। यह भी विचार था कि यदि समाज का ठीक प्राकर से संघटन किया गया तो उचित तथा आवश्यक वातावरण भी अधिक सरलता से उत्पन्न हो जायेगा। इसलिये भारतीय समाजशास्त्रियों ने उपयुक्त वातावरण निर्माण करने वाली एक ऐसी समाज-रचना तैयार की जिसमें व्यक्ति को उन्नति भी हो सके तथा समाजिक सुव्यवस्था भी रहे। भारतीय समाजशास्त्रियों का यह मत था
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