‘‘महाकवि कालिदास के महाकाव्यों में बिम्ब-विधान’’
Abstract
कविता कामिनी-कान्त कालिदास न केवल संस्कृत वाङ्मय के, अपितु विश्व वाङ्मय के मुकुटालंकार है।1 उनकी सूक्ष्मदृष्टि बाह्यजगत् और अन्तर्जगत् की तात्विक विधाओं का साक्षात्कार करती हुुई मनोरम पदावली में उनको अनस्यूत करती है। उनकी कलात्मक तूलिका नीरस में सरसता, कर्कश में कोमलता, कठोर में सुकुमारता, सामान्य में विलक्षणता, दुर्बोध में सुबोधता, काव्य में सर्वात्मकता और प्रसाद में माधुर्य का विम्ब-प्रतिबिम्ब भाव का निदर्शन कराती है।2 बाणभट्ट अपने ग्रन्थ हर्षचरित में कविकुलगुरू कालिदास के बारे में कहते हैं-
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