हिन्दी साहित्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन

स्वीटी गुप्ता

Abstract


लोकोक्ति तो भाषा-साहित्य की परंपरा से भाषा का काव्य शास्त्र तक तथा अलंकारवाद प्राप्त कर चुकी है। कहावतें भी लोकोक्ति के अंतर्गत आ जाती है। लोकोक्तियाँ लोकजीवन के खट्ठे-मीठे विस्तृत अनुभवों को जन-सामान्य के शब्दों के माध्यम से व्यक्ति करती हैं। वास्तव में लोकाक्तिययाँ भाषा का श्रंगार हैं। ये लोकप्रिय हैं तथा लोक जीवन में संर्वकालीन प्रणाणिक एवं सच्ची हैं। आज भी लोकोक्तियों की प्रासंगिकता अक्षुण्ण है। वर्तमान युग में इनका महत्व बढ़ गया है। हर देश में हर काल में लोकोक्तियों की रचनाएँ हुई हैं, जिनके शब्दों में जन-सामान्य पर जादू का सा असर किया। इस परंपरा में हमारा लोक जीवन अधिक समृद्ध रहा है। घोर निराशान्धकार में भी आशा-दीप बनकर जीवन को प्रकाशमान करने वाली ये लोकोक्तियाँआज के तनावयुक्त युग में जी रहे मनुष्य के लिए शीतलता प्रदान करती हैं। दुविधा या कठिनाई में पड़ा मनुष्य इन लोकोक्तियों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन की चक्करदार गलियों में भी सही गली चुन सकता है। डॉ प्रताप अनम के शब्दों में ‘‘लोकोक्तियाँ इतनी खाटी और भदेश होती हैं कि सुनने वाले के भीतर तक उतरती चली आती हैं। इनमें बोलने के साथ ही दुश्यचित्र को साकार कर देने की अपार क्षमता होती है। कहावतें व लोकोक्तियाँ आपकी भाषा को सजा-सँवारकार संस्कार भेंट करती हैं।

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