भारत के स्वाधीनता संघर्ष में सुभाषचन्द्र बोस का योगदान
Abstract
वस्तुतः भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा के उद्भव एवं विकास का अपना अलग महत्व है। द्वितीय महायुद्ध के दौरान भारत में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसे राष्ट्रवादियों को भारत की सेनाओं को ब्रिटिश सरकार के पक्ष में युद्ध करने के निर्णय से काफी निराशा हुई और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के निर्णय की भरपूर आलोचना की। तत्कालीन भारत की बदलती परिस्थितियों में नेता जी ने यूरोप के कई देशों की यात्रा की और वहां के राष्ट्रवादी नेताओं से भेंट की। इस कारण सुभाषचन्द्र बोस 1933 से 1938 तक भारत की सक्रिय राजनीति से अलग रहे। जब 18 जनवरी 1938 को कांग्रेस के महामन्त्री आचार्य जे.बी. कृपलानी ने घोषणा की कि सुभाषचन्द्र बोस को गुजरात के हरिपुरा में होने वाले कांग्रेस के 51वें अधिवेशन का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया है तो उस समय सुभाषचन्द्र बोस इंगलैंड में थे। यह खबर सुनकर वे 24 जनवरी 1938 को कलकता पहुंच गए। भारत में आने के बाद हरिपुरा कांग्रेस में उन्होंने अध्यक्ष पद से अपने जीवन का सबसे लम्बा भाषण दिया जो उनकी राजनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है। 1939 में नेता जी ने गांधी समर्थित उम्मीदवार पट्ाभि सीतारमैया को हरा दिया तो गांधीवादी नेता उनके विरूद्ध हो गए और अंततः उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर 3 मई 1939 को फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की घोषणा कर दी। तत्पश्चात 1942 में उन्होंने विदेशी धरती पर आजाद हिन्द फौज की स्थापना की जो अन्त तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ती रही। प्रस्तुत शोध पत्र में भारत के स्वाधीनता संघर्ष में सुभाषचन्द्र बोस के योगदान पर प्रकाश डाला गया है।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd
![Creative Commons License](http://licensebuttons.net/l/by-nc-sa/4.0/88x31.png)
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org