‘काला पहाड़’ : साम्प्रदायिक सौहार्द की विरासत का दस्तावेज
Abstract
हमारा देश आज सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तनाव से गुजर रहा है। एक ओर जहाँ अनेक राजनीतिक पार्टियों द्वारा फैलाया जाने वाला जातिवाद है तो दूसरी ओर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ किया जाने वाला घृणित और जघन्य कुकर्म है। ‘‘इस तनावपूर्ण माहौल में भगवानदास मोरवाल का उपन्यास ‘काला पहाड़’ सुकून तो देता ही है, यह जानकर तसल्ली होती है कि अभी बिलकुल अंधेरा नहीं हुआ है; रोशनी नजर आ रही है। इस समाज में प्रगतिशील चेतना से युक्त लोग मौजूद हैं, जो इस समाज को इन ताकतों से लड़ने का साहस रखते हैं। सलेमी (इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र) जैसे लोग इस समाज में मौजूद हैं जो निरंतर जातिवादी और संप्रदायवादी शक्तियों से संघर्ष कर रहे हैं।’’1
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd
![Creative Commons License](http://licensebuttons.net/l/by-nc-sa/4.0/88x31.png)
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org