द्ववेदी युगीन निबंधों में भावात्मकता
Abstract
साहित्यकार का अनुभव साहित्य-रचना के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। ‘स्व’ की सीमाओं को लाँघकर वह अनुभव ग्रहण करता है और उन्हीं अनुभवों को परिष्कृत कर प्रकट करता जाता है। अतः अनुभूति और अभिव्यक्ति ही साहित्य के मुख्य आधार सिद्ध होते हैं। अभिव्यक्ति की अलौकिकता साहित्य को ‘साहित्यत्त्व’ प्रदान करती है तो अनुभूति की गहराई उसका प्राण मानी जाती है। यह भी सत्य है कि साहित्यकार की अनुभूति गहरी, उदात्त, गंभीर और मूलगामी न हो, तो अभिव्यक्ति की अलौकिकता कोई अर्थ नहीं रखती।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org