भारत में क्षेत्रीय दलों का उद्भव एवं विकास
Abstract
भारत में क्षेत्रीय दलों के निर्माण का अपना विशेष इतिहास है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत में क्षेत्रीय दलों की उत्पति का प्रमुख कारण राष्ट्रीय दलों से असंतुष्टि का भी परिणाम रहा है और अधिकतर क्षेत्रीय दल कांग्रेस पार्टी में आपसी फूट तथा प्रतिस्पर्धा के कारण ही पनपे है। यदि वर्तमान सन्दर्भ में देखा जाए तो कई क्षेत्रीय दल तो गठबंधन राजनीति की देन है। अपने शैशवलकाल में भारत में क्षेत्रीय दलों का उदृध व विकास राज्यों की स्वायत्तता की मांग, उपसंस्कृति के विकास, जातीयता व धर्म की भावना आदि के कारण ही हुआ है। इसमें असंतुलित क्षेत्रीय विकास ने भी अपना योगदान दिया है जो क्षेत्र राष्ट्रीय विकास की मुख्य धारा से कट गए या उनकी उपेक्षा हुई, कालांतर में वहां क्षेत्रवाद की भावना का जन्म हुआ और इससे क्षेत्रीय दलों का निर्माण हुआ। वस्तुतः 1967 में चौथे आम चुनावों के बाद कई राज्यों में गैर-कांग्रेसवाद की जो लहर पैदा हुई आगे चलकर उसने सम्पूर्ण राजनीति को अपने चपेट में लिया और 1989 के बाद तो क्षेत्रवाद की राजनीति बदलते भारतीय राजनीतिक परिवेश में एक अटल सत्य बन गई। अतः वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भी इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता क्येंकि प्रत्येक आम चुनाव के बाद क्षेत्रीय दलों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। प्रस्तुत शोध पत्र में भारत के सन्दर्भ में क्षेत्रीय दलों के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डाला गया है।
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