भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले निर्धारित तत्वों का विश्लेषणात्मक अध्ययन

अशोक कुमार

Abstract


निर्वाचन लोकतंत्र की एक अनिवार्य क्रिया है, जिसमें मतदाता अपने मत का प्रयोग करके अपनी पसंद के उम्मीदवार को चुनते हैं। पहले मताधिकार सीमित हुआ करता था, किन्तु 20वीं शताब्दी में मनुष्य के निर्णय लेने की शक्ति में विश्वास करते हुए, विश्व के अधिकांश देशों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया। भारतीय संविधान-निर्माताओं ने भी सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार में विश्वास किया और प्रत्येक 21 वर्ष के व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मताधिकार प्रदान किया। बाद में 1988 में 61वें संविधान संशोधन द्वारा 21 वर्ष से उम्र घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। भारत में प्रत्येक वयस्क मताधिकार तो प्राप्त हो गया, किन्तु महत्वपूर्ण बात यह जानना है कि वह किन-किन तŸवों से प्रभावित होकर अपने इस अधिकार का प्रयोग करता है राजनीति शास्त्र के विघार्थियों के लिए यह विषय अत्यंत महŸवपूर्ण है, क्योंकि मतदाताओं के इसी निर्णय पर लोकतंत्र की सफलता या असुलता निर्भर करती है। इससे पूर्व कि हम मतदान व्यवहार के निर्धारकों की चर्चा करें, हमारे लिए यह उचित रहेगा कि हम मतदान व्यवहार का अर्थ स्पष्ट करें।

Full Text:

PDF




Copyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd

Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.

 

All published Articles are Open Access at  https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/ 


Paper submission: ijr@pen2print.org