वैदिक साहित्य में धर्म और दर्शन

Mr. देवेन्द्र

Abstract


धर्म की अगर बात करे तो इसका साधारण शब्दों में अर्थ हैं जो धारण करने योग्य हैं वही धर्म हैं। यहां हम धर्म के बारे में ये कह सकते हैं कि यह कुल मिलकार नैतिक मूल्यों का एक समूह मात्र हैं , जो मनुष्य के लिए नितांत आवश्यक हैं। आज हम दुनिया में कई धर्मां को पाते है लेकिन अगर हम सूक्ष्म दृष्टि से देखे तो उनमें हमें कई बाते एक समाज दिखाई देती हैं वो हैं नैतिकता लेकिन कहीं ना कहीं जहां तक मुझे समझ आया हैं इसमें हमें एक डर का भाव भी दिखाई देता हैं जिसमें पारलौकिक शक्तिअयों के प्रति डर को भी दिखाया गया हैं। हाँ यह सत्य प्रतीत होता कि धर्म के कारण मनुष्य जाति आध्य सुख प्राप्त करती रही हैं , मुसीबत के समय धर्म उनके लिये एक सबल बन कर उभरा हैं लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखे या फिर इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते जब अतीत पर नजर डालते हैं तो धर्म के नाम पर इस दुनिया में अत्याचार भी बहुत हुए हैं ।लेकिन हमारे यहां धर्म और खासकर वैदिक धर्म की बात करेंगे उसमें उसके आध्यात्मिक पक्ष की तरफ ज्यादा ध्यान देंगें। अगर हम दर्शन की बात करे तो यह वह ज्ञान हैं जो मनुष्यता के बारे में हमारी समझ विकसित करता हैं। जीवन क्या उसका उद्देश्य क्या हैं कुल मिलाकर सत्य की खोज ही दर्शन हैं यहां हम वैदिक समय में भारतीय दर्शन के बारे में बात करेंगें । उस समय की सोच समझ या कहे उनकी विद्वता की बात करेंगें।


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