‘बाल-दिवस’ में बालमन को उकेरती कहानियॉं-एक अध्ययन
Abstract
भौतिकतावाद, शहरीकरण, औधोगिकरण, आधुनिकता की दौड़, इन्फारमेशन टेक्नोलॉजी का बढ़ता प्रभाव, अनेको कारण है जिनसे आज का युग मशीनीकरण में तबदील हो गया। बदलते परिवेश मे जहॉं अनेक परिर्वतन हुए वहॉं अध्यापकिय जीवन, शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे और शिक्षा के स्तर में भी परिर्वतन हुआ हैं। आधुनिक संदर्भ में अध्यापक और अभिभावक भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में बच्चों को पर्याप्त समय नही दे पा रहे हैं। सहस्त्र पुस्तको के सजृन करने वाले साहित्यकार डॉ0 मधुकान्त ने अपने कहानी संग्रह ‘बाल-दिवस’ में बाल उत्पीड़न, बाल शोषण, अकेलापन, भ्रष्टाचार, मानवीय संवेदनाओं का गिरता स्तर, आदि मानव मस्तिष्क को संकुचित, अविश्वासी और विषाक्त बनाने वाली समस्याओं को उकेरा है। बालको के सर्वांगीन विकास के लिए लेखक स्वयं लिखते है ‘बालक को आजाद करना होगा, उसकी जिज्ञासाओं को, सवालों को, धैर्यपूर्वक हल करना होगा, उनके साथ बैठना, खेलना और उनका दोस्त बनना होगा ताकि वे ड़रे नही अपनी मन की बात कह सके।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd
![Creative Commons License](http://licensebuttons.net/l/by-nc-sa/4.0/88x31.png)
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org