अंग्रेजी शिक्षा के भारतीय समाज पर प्रभावों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
कम्पनी शासन के अधीन अंग्रेजी शिक्षा का भारत में बहुत जोरों से विकास हुआ। जैसे-जैसे कम्पनी के शासन का विस्तार होता चला गया। वैसे-वैसे ही ब्रिटिश अधिकारियों को अंग्रेजी शिक्षा के विकास की आवश्यकता महसूस होती चली गई। उन्होंने प्रशासनीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अंग्रेजी भाषा की शिक्षा पर जोर दिया। इस विषय पर डॉ. मजूमदार ने भी लिखा है कि, ‘‘अंग्रेजी भाषा के भारत में प्रचालित होने के कई कारण थे। उनके विचार से उदारवादी भारतीयों का ध्येय सार्वजनिक जीवन में सम्मान प्राप्त करना तथा नई चेतना ग्रहण करना था। उपयोगिता की दृष्टि से प्रशासन में ऊंची नौकरियां प्राप्त करना था जबकि दूसरी ओर ईसाई मिशनरी अंग्रेजी भाषा के पक्ष में थें, परंतु 1835 ई. में मैकाले के विवरण प़ से यह बात स्पष्ट हो गई कि भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होगा। लार्ड विलियम बैंटिक ने भी मैकाले के वर्क को स्वीकार किया और कहा कि आज के पश्चात् भारतीयों को ब्रिटिश साहित्य तथा विज्ञान की शिक्षा अंग्रेजी भाषा में प्रदान की जाएगी।’’ इसके पश्चात् भारत में सरकारी, गैर सरकारी तथा ईसाई मिशनरियों द्वारा स्थापित स्कूलों तथा कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई। 1857 ई. में मद्रास, बम्बई तथा कलकŸा में लन्दन विश्वविद्यालय की तर्ज पर तीन विश्वविद्यालय स्थापित कर दिए गए। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या में दिन-रात वृद्धि होती चली गई।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2018 Edupedia Publications Pvt Ltd
![Creative Commons License](http://licensebuttons.net/l/by-nc-sa/4.0/88x31.png)
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org