हिन्दी काव्य में प्रकृति चित्रण

प्रदीप देशवाल

Abstract


मनुष्य स्वभाव से ही सौंदर्यप्रेमी माना जाता है और प्रकृति अपने आप में सुंदरता का स्रोत है। मानव और प्रकृति का संबंध अनादि और चिरतन है। यह मान्यता प्रसिद्ध है कि मनुष्य को साहित्य सर्जन की प्रेरणा प्रकृति के रहस्यों को देखकर व जानकर ही प्राप्त हुई। विशेषतः कवि और साहित्यकार ने तो प्रकृति को माँ, प्रेमिका, उपदेशिकाय, पथ प्रदर्शिका, सुंदरी, अप्सरा, दैवी और पत्नी आदि न जाने कितने ही रूपों में देखा है। वैदिक साहित्य प्रकृति संबंधी ऋचाओं और सूक्तों से परिपूर्ण है। ऋग्वेद से प्रकृति चित्रण की सुदृढ़ परंपरा प्राप्त होती है। उस ग्रंथ में उषा, सूर्य, मरूत, इंद्र आदि को अलौकिक शक्तियों के रुप में, उनका मानवीकरण किया गया है। उदाहरणतः


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