राजस्थान की मुस्लिम स्त्रियों की प्रस्थितिः एक ऐतिहासिक अध्ययन

शकुन्तला मीणा, कमलेश सिंह महरिया

Abstract


राजस्थान में हालांकि मुस्लिम धर्म, मुसलमानों के बीच भ्रातृत्व में विश्वास करता है व जातिवाद व ऊँच-नीच को नहीं मानता परन्तु वास्तविकता में राजस्थानी मुसलमान महिलाओं में जातिवाद विद्यमान है। जाति के आधार पर ही व्यक्ति को समाज में उच्च व निम्न स्थिति प्राप्त होती व रही है। इन्ही तथ्यों का शोध अध्ययन का मुख्य उद्देश्य रखते हुए प्रस्तुत शोध अध्ययन राजस्थान की मुस्लिम स्त्रीयों की प्रस्थितिः एक ऐतिहासिक अध्ययन विषय को चुना गया है। किसी भी देषकाल और समाज में स्त्रियों की दषा पूर्णाता स्वतंत्र और समान नहीं है। मुस्लिम समुदाय में यह स्थिति अधिक चिंताजनक है। भारतीय परिदृष्य में मुस्लिम औरतों की स्थिति पर विचार करने के लिए स्त्रियों की दषा पर विचार करना आवष्यक है। क्योंकि भारतीय मुस्लिम स्त्रियों की दषा अन्य धर्मों या समुदायों की स्त्रियों से बहुत भिन्न नहीं है। अधिकार और विचार, किसी भी स्तर पर उनकी स्वतंत्रता और समानता की बात तो दूर कई बार तो उन्हें समान्य जीवन स्थितियां भी नसीब नहीं होती। बावजूद इसके उनकी जिजीविषा तो वाकई हतप्रभ और स्तब्ध कर देती है। विषम परिस्थितियों में भी वे न सिर्फ अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं बल्कि हर भूमिका को सफलता पूर्वक और सहजता के साथ निर्वाहन भी कर लेती हैं। इस जीवजगत में उनसा कठजीवी दूसरा प्राणी मिलना तो नितांत असंभव ही है। अपने तमाम श्रम, सृजन, संवेदना, निष्ठा और अस्तित्व को उपेक्षित किए जाने के बावजूद कत्तवर्य पथ पर निरंतर सक्रिय उनसा कर्मयोगी तो अन्यत्र दुर्लभ ही है। जिसके होने से दुनियां का अस्तित्व है और जो अपने अस्तित्व को मिटाकर भी दुनिया का सृजन करने का माद्दा रखती है। किसी भी सभ्य समाज में उसकी अवेहलना चिंतनीय ही नहीं निन्दानीय भी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पष्चात हिन्दी साहित्य में मुस्लिम उपन्यासकारों ने अपने सार्थक हस्तक्षेप से मुस्लिम समाज को समझने में काफी मद्द मिली है।


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