कौशल विकास का गांधी मार्ग एक नूतन विमर्श

विजय कुमार मिश्र

Abstract


गांधी का स्किल डेवलपमेंट विदेश की ज़रूरतों को पूरा करने या बाजार की भूख शांत करने का साधन नहीं है। स्किल डेवलपमेंट की उनकी कसौटी यह है कि इससे बाज़ार की ताकत भी टूटनी चाहिए और समाज बाज़ार का मुकाबला करने में सक्षम भी बनना चाहिए।
महात्मा गांधी कारखाने को समाज की सम्पत्ति मानते थे और श्रमिक तथा उद्योगपतियों को उनका ट्रस्टी, जो उद्योग को समाज या राष्ट्र के हित में चलाते है। उनका कहना था कि हमें अपने किसी भी साधन अथवा अपने समय के एक क्षण का अपव्यय करने का अधिकार नहीं है। यह किसी भी व्यक्ति या समूह का नहीं, वरन राष्ट्र की अमूल्य सम्पत्ति है और हममें से प्रत्येक उसे सदुपयोग के लिये नियुक्त एक ट्रस्टी है। श्रमिकों और उद्योगपतियों का वे यह अधिकार मानते थे कि किसी कारणवश उत्पादन पर लगने वाली लागत बचायें। उनका यह कर्तव्य है कि वे कारखाने को अच्छी तरह चलाने के लिये एक दूसरे को नुकसान या तकलीफ न पहुंचाये, हमेशा ईमानदारी से कोशिश करते रहें


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