73वाँ संविधान संशोधन व महिला अधिकार

पूजा सिंह

Abstract


पंचायतीराज व्यवस्था लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का साधन है। इसके माध्यम से लोकतंत्र को धरातल या जमीनी स्तर पर ले जाने का प्रयास किया जाता है। केन्द्र एवं राज्य की सत्ता का बँटवारा करके स्थानीय महत्व के मुद्दों को स्थानीय स्तर पर पंचायतीराज संस्थाओं को शक्ति सौपा जाता है जिससे लोगों की सहभागिता शासन सत्ता में बढ़ सके।
पंचायतीराज संस्थाओं की स्थापना का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से और सशक्त करना है तथा ऐसी व्यवस्था स्थापित करना जिससे भविष्य में अधिक शक्ति और उत्तरदायित्व का हस्तान्तरण किया जा सके और स्थानीय जनता अपने मामलों का प्रबन्धन स्वयं करें तथा सत्ता में जीवन्त सहभागी बने। इससे शासन क्षेत्र में कार्यकुशलता आयेगी। ग्रामीण जनता को उनके राजनीतिक अधिकारों की जानकारी मिलती है इससे उनकी राजनीतिक, सामाजिक चेतना बढ़ती है।1
भारत में पंच एवं पंचायतें तो प्रारम्भ से ही रही है लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात आधुनिक परिस्थितियों को देखते हुए इसे स्थायी सशक्त एवं मजबूत स्वरूप प्रदान करने के लिए 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतीराज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और 24 अप्रैल 1993 को 73वां संविधान संशोधन लागू कर दिया गया।2


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