उत्तरवैदिक काल में भारत की सामाजिक व्यवस्था
Abstract
वस्तुतः वैदिक साहित्य से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर जिस सभ्यता का ज्ञान हुआ है, उसे उत्तरवैदिक सभ्यता कहा जाता है। यद्यपि वैदिक साहित्य रचना के सम्बन्ध में तो काफी मतभेद हैं परन्तु ऋग्वेदकालीन साहित्य का अन्तिम समय 12से 11 सदी ई0पू0 माना जाता है, अतः इसके बाद सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद संहिता, ब्राह्मण ग्रंथ, अरण्यक, उपनिषद तथा सूत्र ग्रंथ आदि की रचना होने से वैदिक साहित्य में अपार वृद्धि हुई। उत्तरवैदिक काल में आर्य लोग सुदूर पूर्व और दक्षिण दिशा की तरफ फैल गए थे। उत्तरवैदिक साहित्य में इस बात का भी उल्लेख है कि जैसे-जैसे आर्य लोग पूर्व दिशा में बढे तथा नगरों का विकास हुआ, परिणामस्वरूप पंचाल, कोशल, विदेह, मगध तथा अंग जैसे नगरों का बसना प्रारम्भ हो गया। अतः उत्तरवैदिक साहित्य से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह बात स्पष्ट हो गई है कि इस काल में नगरीय जीवन आरम्भ हुआ। प्रस्तुत शोध पत्र में उत्तरवैदिक काल में भारत की सामाजिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है।
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