विचार सागर में अधिकारी निरूपण

हेम चन्द्र

Abstract


भारतीय आस्तिक दार्शनिक परम्परा में षड्दर्शन सांख्य–योग, न्याय–वैशेषिक, पूर्वमीमांसा तथा वेदान्त (उत्तरमीमांसा) सुविख्यात हैं । षड्दर्शन के अन्तर्गत वेदान्त सम्प्रदाय उपसम्प्रदायों में विभक्त है । यथा– अद्वैत,विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत इत्यादि । इन उपसम्प्रदायों में अद्वैतवेदान्त के प्रतिष्ठापक के रूप में शङ्कराचार्य का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है । वस्तुतः शङ्कराचार्य से पूर्व भी अद्वैत की परम्परा चली आ रही थी ऐसा विद्वानों का मत है । शङ्कराचार्य ने ब्रह्मसूत्र नामक ग्रन्थ के भाष्य में अद्वैतवाद के मुख्य सिद्धान्त ब्रह्म तथा जीव की एकता का प्रतिपादन किया है। शङ्कराचार्य के अनन्तर वाचस्पति मिश्र प्रभृति अनेक आचार्य हुए हैं जिन्होंने अद्वैतवाद के सिद्धान्त को आधार बनाकर विभिन्न ग्रन्थों की रचना कर अद्वैत की परम्परा को सातत्य प्रदान किया । अद्वैतवाद की इस परम्परा में निश्चलदास हुए जिन्होंने ‘विचार सागर’ नामक ग्रन्थ में अद्वैतवाद के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया ।


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